आज रविंद्रनाथ टैगोर को याद किया जा रहा है, क्योंकि इस वर्ष महान भारतीय कवि टैगोर की चीन की अविस्मरणीय यात्रा की ९८ वीं वर्षगांठ है। वे प्रेम और भ्रातृत्व का संदेश लेकर चीन आए थे और उन्हें महसूस हुआ था कि यही भावनाएं दोनों देशों के बीच विद्यमान संपर्कों का सार तत्व हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि उनकी यात्रा से चीनी लोग बहुत प्रभावित हुए, और तब से तमाम चीनी लोगों के मन में टैगोर के साहित्य, और पूरे भारत के बारे में गहरी रुचि पैदा हुई। अभी भी चीनी लोग बुद्ध, गांधी, टैगोर और अशोक जैसी भारतीय इतिहास की महान हस्तियों को याद करते हैं।
मैं ८० के दशक में पैदा हुआ था। करीब १५ साल की उम्र से ही मुझे टैगोर के साहित्यिक कार्य के बारे में बहुत रुचि पैदा हुई। काम के चलते, करीब चार वर्ष पहले मुझे कोलकाता स्थित जोरासांको टैगोरबाड़ी और टैगोर द्वारा स्थापित किए गए शांति-निकेतन का दौरा करने का सौभाग्य मिला। बेशक, भारतीय संस्कृति या टैगोर साहित्य से प्यार करने वाले कई चीनी लोगों का भी यही सपना होता है।
वर्ष १९२४ के अप्रैल में टैगोर चीन के दौरे पर आए धे। उन्होंने हमेशा पारंपरिक चीनी संस्कृति की प्रशंसा की। यात्रा के दौरान प्रसिद्ध चीनी विद्वान ल्यांग छीछाओ और मशहूर चीनी कवि श्य्वी चीमो उनके साथ रहे। इसमें एक दिलचस्प और सच्ची बात थी। एक बार ल्यांग छीछाओ ने कहा कि उन्होंने टैगोर को 'चू चनतान' चीनी नाम दिया। और चीनी भाषा में ' चू' भारत का प्राचीन नाम है जो चीनी हान राष्ट्रीयता का उपनाम भी है, और 'चनतान' प्राचीन भारतीयों द्वारा चीन को दिये गये नाम का चीनी अनुवाद है। भारत और चीन के लोगों के बीच दोस्ती का एक लंबा इतिहास है, और यह टैगोर की पहचान और उनकी चीन यात्रा के उद्देश्य के साथ बहुत मिलता है। टैगोर यह बात सुनकर बहुत खुश हुए। उन्हें यह चीनी नाम बहुत पसंद आया।
चीन में दिए गए एक व्याख्यान में टैगोर ने कहा था, ''मुझे आशा है कि आपमें से ही कोई एक स्वप्नदर्शी आएगा, जो प्रेम के संदेश का संचार करेगा, जिससे हमारे बीच मौजूद मतभेदों की खाइयों को पाटा किया जा सकेगा।'' उनके ये शब्द चीन और भारत, दोनों देशों से संबोधित थे, जिनके जरिए गहन पारस्परिक समझबूझ का निर्माण करने का आह्वान किया गया था।
इसमें कोई शक नहीं है कि चीन और भारत प्राचीन काल से मित्रवत पड़ोसी रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से, दोनों लोगों के बीच दीर्घकालिक मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और घनिष्ठ आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ है। जब टैगोर ने चीन का दौरा किया, तो परिवहन और प्रौद्योगिकी उतनी उन्नत नहीं थी जितनी अब की है। हालांकि हाल के दशकों में भारत-चीन संबंधों में सुधार हुआ है, फिर भी यह अफ़सोस की बात है कि वर्ष २०२० में सीमा पर हुई झड़प के बाद दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान लगभग बंद हो गया है। हां, यह भी सच है कि इतिहास जैसे विभिन्न कारणों से, चीन और भारत के बीच सीमा मुद्दे पर मतभेद मौजूद हैं, जिनका थोड़े समय में संतोषजनक ढंग से हल मुश्किल है। लोकिन दोनों देशों के बीच संबंध केवल सीमाओं के बारे में नहीं हैं, आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की ज़रूरत भी है। साथ ही दोनों देशों को एक दूसरे को अध्ययन पर बेहतर ध्यान देने की आवश्यकता भी है। ताकि दोनों देशों के बीच आपसी समझ और आपसी विश्वास में बढ़ावा दिया जा सके।
विशेष रूप से टैगोर की चीन यात्रा जैसे सांस्कृतिक आदान-प्रदान लोगों के दिलों की प्रतिध्वनि जगा सकते हैं। दुनिया में सबसे शानदार सभ्यताओं वाले दो देशों के रूप में, चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए व्यापक स्थान है। मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान के निरंतर मजबूत होने से निश्चित रूप से चीन-भारत मित्रता को गहरा और मजबूत करने में मदद मिलेगी।