जन्माष्टमी

2025-09-27

कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहारों में से एक है। इस त्यौहार को गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, श्रीजयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसको भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी का ये त्यौहार बहुत लोकप्रिय है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में भव्य सजावट, प्रार्थना, नृत्य समारोह किये जाते हैं। साथ ही इस दिन लोग दिनभर व्रत रखते हैं और रात 12 बजे विशेष भोजन के साथ इस व्रत को खोलते हैं। महाराष्ट्र में ये त्यौहार जन्माष्टमी दही हांडी के लिए विख्यात है।

द्वापर युग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन का शासन था और उनके पुत्र का नाम कंस था। एक दिन कंस ने बलपूर्वक उग्रसेन से सिंहासन छीनकर उन्हें कारावास में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ हुआ था। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ पर सवार होकर जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई, "हे कंस! जिस बहन देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसकी आठवीं संतान ही तेरा वध करेगी। आकाशवाणी सुनने के बाद कंस क्रोध से भर गया और देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया,ये सोचकर कि न देवकी होगी न उसका पुत्र होगा

कंस को वासुदेव जी ने समझाया कि तुम्हें देवकी की आठवीं संतान से भय है, इसलिए मैँ अपनी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात को स्वीकार कर लिया और वासुदेव-देवकी को कारावास में कैद कर दिया। कंस ने देवकी के गर्भ से उत्पन्न सभी संतानों  को निर्दयतापूर्वक मार डाला।

भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी दिव्य प्रकाश से जगमगा उठी। भगवान विष्णु ने अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर वासुदेव-देवकी जी से कहा, आप मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के घर पहुँचा दो और उनके जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने बिल्कुल वैसा ही किया।

कंस ने जब उस कन्या का वध करना चाहा, तब वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण करने के बाद बोली कि मुझे मारने से तुझे क्या लाभ है? तेरा शत्रु और देवकी की आठवीं संतान तो गोकुल पहुँच चुका है। यह सारा दृश्य देखकर कंस भयभीत और व्याकुल हो गया, इसलिए उसने श्रीकृष्ण की हत्या करने के लिए अनेक दैत्य भेजे। भगवान कृष्ण ने अपनी शक्ति से सभी दैत्यों का संहार कर दिया। अंत में उन्होंने कंस का वध करके उग्रसेन को वापस राजगद्दी पर बैठाया।