भारतीय विश्व विरासत: भारतीय वास्तुकला में कला और संस्कृति

2023-03-01

भारतीय विश्व विरासत: भारतीय वास्तुकला में कला और संस्कृति


 

भारत ने अनुबंधित राज्य के रूप में १४,नवंबर १९७७ से “विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन” में भाग लिया था ।२०१९ तक भारतीय विश्व विरासत की संख्या मिलाकर ३८ हैं जिन्हें यूनेस्को से जाँचकर “विश्व विरासत सूची” में शामिल होने की मंज़ूरी किया गया है । भारतीय विश्व विरासतों में प्राकृतिक विरासत सात , सांस्कृतिक विरासत तीस और सांस्कृतिक और प्राकृतिक मिश्रित विरासत एक सन्निहित है । संख्या में भारत विश्व में छठी स्थान रखता है । भारत में सबसे पुरानी वास्तुकला सिंधु सभ्यता के दौरान दिखाई दी,पर भारतीय वास्तुकला की वास्तविक शुरुआत मौर्य राजवंश के दौरान हुई थी। सबसे पहले विद्यमान हिंदू स्थापत्य कला गुप्त राजवंश के दौरान कुछ रॉक-कट गुफाएं हैं। लंबे इतिहास में, भारतीय वास्तुकला जिसने देशी और विदेशी धर्मों की कला और संस्कृति मिलाया है, अनोखा की शैली बनती है ।भारतीय वास्तुकला के विरासतों को समझने के लिए हम तीन उदाहरणों पर ध्यान देंगे: कोणार्क सूर्य मंदिर जो ओड़िशा में स्थित है; ताजमहल जो उत्तर प्रदेश में स्थित है; सांची का स्तूप बौद्ध परिसर जो मध्य प्रदेश में स्थित है।


 

१. कोणार्क सूर्य मंदिर और हिंदू संस्कृति

कोणार्क सूर्य मंदिर कलिंग के राजा नरसिंह देव से तेरहवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था जो भारत में सबसे नामी ब्राह्मण मंदिरों में से एक है । कोणार्क सूर्य मंदिर भारत में प्रसिद्ध और ऐतिहासिक महान मंदिर है ।वह ओड़िशा का छोटे से कोनारक नामक शहर में और  बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है ।उस का रूप सूर्य देव के रथ चलाने जैसा है जिस के पहिये प्रतीक और पैटर्न से सजाया-धजाया था और जिसे छै घोड़ों से चलाया था।अब तक अधिकांश हिस्से टूट गया हैं, केवल आधा बचा है, पर बचा हुआ खण्डहर भी उस समय का आकर्षण दिखाई पड़ता है ।इस से दुनिया भर से पर्यटक आकर्षित करके यहाँ आते हैं । बल्कि इस मंदिर का उद्गम के बारे में विभिन्न आदमियों का कहना अलग है, मुख्यतः तीन कहने होते हैं:पहले,एक देवता का बेटा बीमार था, और यह सूर्य देवता के उपचार के तहत बेहतर हो रहा था, और सूर्य देवता को धन्यवाद देने के लिए कि अपने जीवन को बचाया, उन्होंने कोणार्क नामक इस मंदिर की स्थापना की, जिसका अर्थ"सूर्य की भूमि"है ; दूसरे, तेरहवीं  शताब्दी में, राजा नरसिंह देव ने सूर्य देवता से प्रार्थना करने के लिए मंदिर का निर्माण किया ताकि उन्हें विकृत रीढ़ की हड्डी का इलाज किया जा सके; तीसरे, पुरातत्वज्ञ का यह अनुमान कि उस समय ओड़िशा के लड़ाई में फंस जाने के कारण राजा नरसिंह देव ने मुस्लिम आक्रमणकारियों पर जीत का जश्न मनाने और सूर्य देव को धन्यवाद देने के लिए स्मारक के रूप में इस मंदिर स्थापित किया है।वास्तव में हम ऊपर विषय के अनुसार बहुत हिंदू संस्कृति से संबंधित तत्व पा सकते हैं जैसे कि मंदिर की छवि सूर्य देवता से संबंधित है और सूर्य ब्राह्मणवाद का देवता है।


 

२. ताजमहल तथा इस्लामी संस्कृति

ताजमहल विदेशी पर्यटकों के लिए भारत में पर्यटन का मुख्य आकर्षण है,जो भी संसार के सबसे खूबसूरत भवनों में से एक है।वह उत्तर प्रदेश के आगरा नामक शहर मे स्थित है और वह यमुना नदी के नज़दीक है । ताजमहल सुनते ही लोग ज़रूर एक रूमानी प्यार का कथा सोचता होगा। टैगोर ने कहा: "ताजमहल अनंत काल के गाल पर आंसू है"।मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी की याद में उस महान चमत्कार की स्थापना करवाया था । १६५३ तक यह मक़बरा ही स्थापित किया गया ।इसमें ज्यादा परिश्रम और लागत लग गए।ताजमहल के निर्माण में लगभग ५-६ करोड़ रुपये लगे ।संगमरमर राजस्थान से, स्फटिक चीन से,मूल्यवान हीरे और पत्थर चीन के तिब्बत,लंका,बगदाद आदि जगहों से मँगवाएँ गए । सुना है कि शाहजहाँ नदी के दूसरी ओर ताजमहल की तरह काले संगमरमर का एक मकबरा बनाना चाहता था,लेकिन उन्हें उन के बेटे से क़ैद किया जाने के मारे इस को पूरा कर नहीं सका ।पिछले चार शताब्दियों से ताजमहल शाहजहाँ और उन की पत्नी के प्रेम का प्रतीक बनकर निश्चल खड़ा है ।आज भी भारतीय लोग अपने विदेशी अतिथियों को बड़े गर्व के साथ इस स्मारक को दिखाने के लिए जाते हैं ।

ताजमहल जो एक सफ़ेद संगमरमर का विशाल मकबरे की मस्जिद है, न केवल भारतीय मुस्लिम कला का खजाना है बल्कि भी विश्व विरासत में उत्कृष्ट कृतियों में से एक है। मुगल राजवंश के महान से महान मकबरे के रूप में , जहाँ उसके पास भारत की अपनी विशेषताएं होती हैं, वहाँ वह सन्निहित करता है कि भारतीय संस्कृति हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों से प्रभावित है


 

३.सांची का स्तूप बौद्ध परिसर एवं बौद्ध संस्कृति

मध्य प्रदेश के सांची नामक गांव में स्थित हुआ सांची का स्तूप बौद्ध परिसर एक दुनिया में प्रसिद्ध बौद्ध विरासत भवन है। इसमें महापाषाण स्तंभ, महल, मंदिर और मठ सहित है ।कहा है कि अशोक द्वारा इसका निर्माण किया है जो बुद्ध धर्म में विश्वास करते थे।वह सबसे पुराना मौजूदा बौद्ध मंदिर है जो बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक भी भारतीय बौद्ध धर्म का सैद्धांतिक केंद्र था। एक निश्चित दृष्टिकोण से कह सके तो “सांची का स्तूप बौद्ध परिसर ”के बिना भारतीय वास्तुकला का विकास जारी करता नहीं।दो हज़ार से अधिक वर्षों की हवा और बारिश के कटाव की वजह , आठ में से केवल तीन ही बचे हैं, जिनमें से सांची का स्तूप वर्तमान में सबसे पुराना, सबसे बड़ा और सबसे पूर्ण स्तूप है। स्तूप प्राचीन भारत के लिए अद्वितीय बौद्ध वास्तुकला के प्रकारों में से एक है। वह मुख्य रूप से बुद्ध और पवित्र भिक्षुओं के अवशेषों,शास्त्रों और धर्म से संबंधित वस्तुओं को स्थापित करने और रखने के लिए उपयोग किया जाता है। सांची का स्तूप पूरी तरह से भारतीय धार्मिक वास्तुकला की अनूठी शैली का प्रतीक है, यानी कार्यात्मकता जो धार्मिक और प्रतीकात्मक अर्थों को एकीकृत करती है।बुद्ध धर्म को बड़े पैमाने पर फैलाया जाने के चलते,उस का आकार और शैली एशिया में बहुत लोकप्रिय है और एशिया के अन्य देशों की वास्तुकलाओं पर प्रभाव करने के साथ भी परिवर्तन हुआ है ताकि स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुकूल हो।


 

ऊपर उदाहरणों से हम पा सकते हैं कि भारत में अधिकांश वास्तुकलाएँ तरह-तरह के धर्मों से संबंधित हैं ।पीढ़ी दर पीढ़ी गुज़र होने के बाद भारतवासियों ने विशाल मानव और भौतिक संसाधन को नक्काशी और वास्तुकला में डाला है । आधुनिक आदमी उन शानदार और अनमोल वास्तुकलाओं से प्रभावित होते हैं । धार्मिक जोश के प्रोत्साहन में भारतवासियों ने जो संकटों से न डरते हैं, निरंतर प्रयास करते हैं, पुरखों के आधार पर आगे चलते हैं और दृढ़ता रहते हैं , उन्होंने विशाल भूमि पर निरंतर विस्मित, शानदार और अमर नक्काशी और वास्तुकला के बारे में कलात्मक चमत्कार का सृजन किया है ।